शर्त के चक्कर में गई युवक की जान
गरियाबंद : घटना जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर ग्राम पीपरछेड़ी की है। गरियाबंद के पीपरछेड़ी थाना क्षेत्र में मंगलवार को शर्त के चक्कर में एक युवक की जान चली गई। पीपरछेड़ी के बांधामुड़ा डैम (मछली बांध) में नहाने गए युवक ने अपने भांजे से बांध तैरकर पार करने की शर्त लगाई थी, लेकिन आधे दूर में ही उसकी सांस उखड़ गई और डूबने से उसकी मौत हो गई।
पीपरछेड़ी का रहने वाला दयाराम यादव (24 वर्ष) चरवाहा है। वो गांव के सभी लोगों के मवेशियों को चराता है। मंगलवार को दीपावली के अगले दिन वो अपने भांजे टिकेश्वर उर्फ पिंटू यादव के साथ मवेशियों को चराने के लिए निकला था। इस बीच दोनों ने पीपरछेड़ी के बांधामुड़ा बांध में नहाने का सोचा। मामा-भांजा के बीच बांध को पार करने की शर्त लग गई। दोनों पानी में उतरकर तैरने लगे। भांजा टिकेश्वर बांध के उस पार पहुंच गया।
इसके बाद उसने पीछे मुड़कर देखा, तो उसे मामा दयाराम कहीं नजर नहीं आया। इससे वो घबरा गया। तुरंत वो वापस इस पार पहुंचा और घरवालों व बाकी लोगों को घटना की सूचना दी। जांच अधिकारी लखेश्वर निषाद ने बताया कि परिवारवाले ग्रामीणों के साथ पीपरछेड़ी थाने पहुंचे थे। उन्होंने घटना की सूचना दी।
पुलिस गोताखोरों के साथ मौके पर पहुंची। जिला नगर सैनिक टीम ने करीब 6 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद युवक के शव को बरामद कर लिया। शव को पानी से बाहर निकाला गया। पुलिस ने पंचनामा कार्रवाई कर शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवा दिया। जिला नगर सैनिक टीम प्रभारी जितेंद्र सेन, गोपी ठाकुर, ललित कुमार, सोहन, इंदल, मनीष कश्यप, संजय नेताम रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल रहे।
चूंकि दयाराम निषाद पूरे गांव के मवेशियों को चराता था, इसलिए हादसे की सूचना मिलते ही मौके पर करीब 200 ग्रामीण जमा हो गए। चूंकि उनके चरवाहे की मौत हो गई, इसलिए बुधवार को ग्रामीणों ने गोवर्धन पूजा भी केवल नाममात्र को ही की। त्योहार का माहौल फीका रहा।
एक साथ मामा-भांजा नहीं पार करते नदी
छत्तीसगढ़ में कहावत है कि मामा-भांजे को एक साथ नदी-तालाब पार नहीं करना चाहिए, ये कहावत भी इस दुर्घटना से चरितार्थ हो गई। यहां तक कि एक नाव में भी मामा और भांजा साथ नहीं बैठते हैं। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण के मामा कंस उन्हें लेने गोकुल आए।
उधर से आते वक्त यमुना नदी में दोनों मामा-भांजे नाव में बैठकर नदी पार कर रहे थे, तभी नदी में शेषनाग प्रकट हुए और उन्होंने नाव पलट दी। तभी से ये मान्यता चली आ रही है कि एक नाव पर मामा-भांजा नहीं बैठते। हालांकि पूजा-पाठ कराकर और श्रीकृष्ण का नाम लेने से ये खतरा दूर हो जाता है।