मालवा-निमाड़ क्षेत्र में कांग्रेस के नौ गढ़ों को जीतने की राह तलाश रही भाजपा

इंदौर। मध्य प्रदेश में सत्ता का गलियारा कहा जाने वाले मालवा-निमाड़ क्षेत्र 15 साल तक भाजपा का गढ़ रहा है। 66 में से 50 से ज्यादा सीटें तक जीतने वाली भाजपा के लिए इस क्षेत्र की नौ सीटें चुनौती बनी हुई हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद कांग्रेस के इन नौ मजबूत गढ़ों को भाजपा जीत नहीं पा रही है।
पूरा जोर लगा रही भाजपा इस बार
कहीं भाजपा की लहर कारगर नहीं हो सकी तो कहीं कांग्रेस नेताओं की दूसरी पीढ़ी इन सीटों पर काबिज है। अब 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा इन क्षेत्रों में परचम लहराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है।
भाजपा ने वर्ष 2003 में कांग्रेस से मालवा-निमाड़ क्षेत्र छीन लिया था।
कांग्रेस के प्रभाव वाली सीटों पर फोकस
उसके बाद से इस क्षेत्र की ऐसी सीटों पर फोकस किया जो दशकों से कांग्रेस के प्रभाव वाली रही हैं। झाबुआ, आलीराजपुर और धार की आदिवासी मतदाता बहुल सीटों पर भाजपा की विशेष रणनीति कारगर रही। यहां भाजपा के उम्मीदवार जीते भी, इसके बावजूद इसके शाजापुर, महेश्वर, सोनकच्छ, कसरावद, राजपुर, गंधवानी, कुक्षी, धरमपुरी, भीकनगांव विधानसभा क्षेत्र ऐसे रहे जहां भाजपा सफलता हासिल नहीं कर पाई।
1993 से कांग्रेस के कब्जे में सीट, एक ही बार भाजपा को मिली सफलता
- भाजपा के लिए शाजापुर विधानसभा क्षेत्र पहेली है। यहां 1990 के समय से ही कांग्रेस विधायक हुकुम सिंह कराड़ा जीतते आ रहे हैं। सिर्फ 2013 के चुनाव में वे भाजपा के अरुण भिमावत से दो हजार से कम वोटों से चुनाव हारे थे, लेकिन अगले ही चुनाव में हिसाब बराबर कर लिया।
- देवी अहिल्या की नगरी महेश्वर भी भाजपा के लिए चुनौती से कम नहीं है। यहां कांग्रेस नेता डा. विजयलक्ष्मी साधौ 1985 में विधायक चुनी गई थीं। उसके बाद से एक-दो मौकों को छोड़कर यह सीट भी कांग्रेस के पास ही रही है।
- बड़वानी जिले का राजपुर विधानसभा क्षेत्र भी लंबे समय तक कांग्रेस के पास रहा है। यहां से बाला बच्चन 1993 में पहली बार विधायक बने। फिर 1998 में भी जीते। मंत्री रहे। यहीं से वर्ष 2013 से लगातार विधायक हैं।
- खरगोन की भीकनगांव विधानसभा सीट भी 2013 से कांग्रेस के पास है। झूमा ध्यानसिंह सोलंकी बीते दो चुनावों में यहां से जीत दर्ज कर रही हैं।
- देवास की सोनकच्छ सीट भी कुछ ऐसी ही है। यहां कांग्रेस के सज्जनसिंह वर्मा कई बार से कब्जा जमाए हुए हैं।
- वर्ष 2008 में धार जिले के गंधवानी को विधानसभा क्षेत्र बनाया गया था। तब से लेकर अब तक यहां कांग्रेस के उमंग सिंघार ही चुनाव जीतते आ रहे हैं।
- धार जिले की कुक्षी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह हनी बघेल बीते दो चुनाव से जीत हासिल कर रहे हैं। पहले उनके पिता पूर्व मंत्री प्रताप सिंह बघेल लंबे समय तक यहां से जुड़े रहे।
- धार के ही धरमपुरी विधानसभा क्षेत्र में भी पांचीलाल मेढ़ा दूसरी बार विधायक हैं। ये सीट पहले भाजपा के पास थी लेकिन फिर हाथ से फिसल गई।
- निमाड़ क्षेत्र की कसरावद विधानसभा सीट जो कभी पूर्व उप मुख्यमंत्री स्व. सुभाष यादव का गढ़ कही जाती थी अब वहां से उनके बेटे सचिन यादव दो बार से विधायक हैं।
इनका कहना है
भाजपा ने इस बार हर एक सीट को लेकर विशेष कार्ययोजना तैयार की है। 39 ऐसी सीटें जहां प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा या प्रत्याशी जीत नहीं सके थे वहां विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसी सीटों के लिए अलग से प्रभारी और टीम तैनात करने के साथ ही जातीय समीकरण, हार के क्या कारण रहे जैसे बिंदुओं पर भी हमने काम किया है।
-आशीष अग्रवाल, प्रदेश मीडिया प्रभारी भाजपा