छत्तीसगढ़ में मानसून के साथ धान उपार्जन केंद्रों में संकट, 211 करोड़ का धान बरसात में खराब होने का खतरा

छत्तीसगढ़ में मानसून की शुरुआत के साथ ही राज्य के धान उपार्जन केंद्रों पर संकट गहराने लगा है। प्रदेशभर में अब तक 92,303 मीट्रिक टन धान उठाया नहीं जा सका है, जिसका मूल्य लगभग 211 करोड़ रुपये आंका गया है। बारिश तेज होने पर यह धान भीगने और खराब होने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान होने का खतरा मंडरा रहा है।
धान खरीदी की नीति के तहत सहकारी समितियों (सोसाइटियों) पर इस नुकसान की पूरी जिम्मेदारी होगी, जिन्होंने यह धान खरीदा है। पहले ही कई समितियों में गर्मी के कारण स्टॉक घटा है, जिसकी भरपाई समिति प्रबंधकों से करने को कहा जा रहा है।
धान उठाव में लापरवाही और नियमों की अनदेखी
सरकार ने 14 नवंबर से 31 जनवरी के बीच न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कुल 149 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा था। हालांकि अधिकांश धान मिलर्स और मार्कफेड के केंद्रों को भेजा गया, पर कई उपार्जन केंद्रों में अभी भी हजारों टन धान पड़ा है। धान उपार्जन नीति के अनुसार, बफर स्टॉक लिमिट पूरी होने के 72 घंटे के भीतर धान का उठाव या परिवहन जरूरी है, लेकिन सैकड़ों समितियों ने इसे नहीं माना।
इस कारण से धान का वजन घटने लगा है और प्रबंधकों को प्रति क्विंटल 2300 रुपये के हिसाब से नुकसान की भरपाई करनी पड़ रही है। कई प्रबंधकों को नोटिस जारी किए जा चुके हैं और एफआईआर की चेतावनी भी दी गई है। इस मुद्दे पर कई समिति संचालकों ने उच्च न्यायालय का रुख भी किया है।
कौन से जिले आगे हैं, कौन पीछे?
राज्य के 33 जिलों में से केवल जांजगीर-चांपा, धमतरी, कोरिया, सरगुजा और सूरजपुर जिलों में पूरी खरीदी गई धान का उठाव हो चुका है। बाकी जिलों में धान अभी भी उपार्जन केंद्रों में पड़ा हुआ है।
नुकसान की संभावना
बचा हुआ धान लगभग 211 करोड़ रुपये मूल्य का है। अगर मानसून के कारण यह धान खराब हुआ, तो इसका पूरा भार सोसाइटी प्रबंधकों पर पड़ेगा। अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार समय रहते इस संकट को संभाल पाएगी या फिर लापरवाही के कारण लाखों रुपये का अनाज बेकार हो जाएगा।