इस साल सावन में काशी विश्वनाथ में प्लास्टिक पर रोक, तांबे या पीतल के लोटे से ही कर सकेंगे भगवान शिव का जलाभिषेक

वाराणसी। वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में अब प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं होगा। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद ने यह फैसला किया है कि सावन के महीने में मंदिर के अंदर प्लास्टिक के किसी भी पात्र में दूध या जल नहीं ले जा सकेंगे। सावन के बाद भी मंदिर के अंदर प्लास्टिक ले जाने पर रोक लगी रहेगी। मंदिर को प्लास्टिक से मुक्त करने के लिए यह कदम उठाया गया है। मंदिर में प्रशासन का कहना है कि सावन के बाद भी भक्त प्लास्टिक के पात्र में दूध या जल मंदिर के अंदर नहीं ले जा सकेंगे। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि भगवान शिव का अभिषेक करने में किस धातु के लोटे का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही जानिए पीतल, तांबा आदि धातुओं के लोटे से जलाभिषेक करने का महत्व और उसके लाभ।
तांबे के लोटे से शिवजी का जलाभिषेक करने का महत्व
तांबा अग्नि तत्व और मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जलाभिषेक करने से पित्त दोष, त्वचा रोग और रक्त संबंधी विकारों में राहत मिलती है। यह शरीर की अशुद्धियों को बाहर निकालता है और क्रोध, ग़ुस्सा व मानसिक अशांति को शांत करता है। साथ ही यह उपाय सूर्य और मंगल ग्रह की अशुभता को कम करता है, जिससे आत्मबल, साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है। विशेषकर छात्रों, नौकरीपेशा और क्रोधी स्वभाव वाले लोगों के लिए यह अत्यंत लाभकारी है।
पीतल के लोटे से शिवजी का जलाभिषेक करने का महत्व
पीतल बृहस्पति ग्रह से जुड़ा होता है और इसे धार्मिकता, ज्ञान, वैवाहिक सुख और संतान की प्राप्ति से जोड़कर देखा जाता है। सोमवार या गुरुवार को पीतल के लोटे से गाय का दूध, शुद्ध जल और थोड़ा सा शहद मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाने से गुरु दोष शांति होती है, वाणी दोष दूर होते हैं और विवाह या संतान में आ रही बाधाएं कम होती हैं। यह अभिषेक मानसिक शुद्धता बढ़ाता है और धार्मिक झुकाव को प्रबल करता है। विद्यार्थियों, अध्यापकों और दांपत्य जीवन में क्लेश से जूझ रहे लोगों के लिए यह उपाय बेहद फलदायी माना गया है।
सोने के लोटे से शिवजी का जलाभिषेक करने का महत्व
स्वर्ण सूर्य और राजसिक ऊर्जा का प्रतीक है। स्वर्ण पात्र से शिवाभिषेक करना अत्यंत दुर्लभ और पुण्यकारी कर्म माना गया है, जो सभी नौ ग्रहों की शांति में सहायक होता है। यह अभिषेक आत्मबल, तेज, यश, राजयोग और पदोन्नति की प्राप्ति में मदद करता है। स्वर्ण से किए गए अभिषेक से साधक के जीवन में अदृश्य अवरोध समाप्त होते हैं और सौभाग्य, दीर्घायु, लक्ष्मी कृपा और उच्च स्तर की आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। विशेष पर्वों जैसे महाशिवरात्रि या श्रावण सोमवार को यह प्रयोग अत्यंत शुभ माना गया है।
भूलकर भी न करें स्टील के लोटे का प्रयोग
स्टील का संबंध शनि से है। स्टील एक प्रकार का लोहा होता है जिसे शुद्ध नहीं माना जाता है। स्टील एक मिश्रित और अप्राकृतिक धातु होती है जो लोहे, क्रोमियम, निकल आदि के मिश्रण से बनाई जाती है। यही कारण है कि इसे धार्मिक अनुष्ठानों और विशेष रूप से देवता विशेष के अभिषेक में अशुद्ध या निषिद्ध माना गया है। स्टील न तो शास्त्रों में वर्णित पंचधातु का हिस्सा है, न ही इसका कोई आध्यात्मिक या ऊर्जात्मक महत्व है। इसमें वह ऊर्जा प्रवाह नहीं होता जो तांबे, चांदी, पीतल या स्वर्ण जैसे धातुओं में होता है। इसलिए पूजा में स्टील के लोटे का प्रयोग न करें।