Chhattisgarh

सिमट कर रह गया सिटी बसों का दायरा, निजी बसों और टैक्सियों में करना पड़ रहा सफर

रायपुर। राज्य गठन के 22 वर्षों के सफर में शहरी, ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों के साथ आदिवासी और सुदुर नक्सली क्षेत्रों में भी सड़कें बनीं, लेकिन इन सड़कों पर सार्वजनिक परिवहन की सुविधाएं उम्मीदों के अनुरूप नहीं बढ़ाई जा सकी। छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक परिवहन की सुविधाएं बढ़ाने की दरकार है। चुनावों में सार्वजनिक परिवहन का मुद्दा कहीं गौण हो जाता है, लेकिन जनता को इसकी अहमियत बाद में समझ आती है। प्रदेश में निजी बसों की संख्या वैसे भी जनसंख्या के अनुपात में कम है, लेकिन सिटी बसों का दायरा सिर्फ रायपुर तक सिमट कर रह गया है, जबकि प्रदेश के अन्य शहरों में अभी तक सिटी बसों की सेवाएं शुरू नहीं की जा सकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि सार्वजनिक परिवहनों को बेहतर बनाने मूल्यवर्धिता के लिए सिटी बसों का दायरा बढ़ाने की आवश्यकता है।

संख्या सीमित होने की वजह से लोगों को मजबूरी में निजी बसों और टैक्सियों में सफर करना पड़ रहा है। एयरपोर्ट से रायपुर, दुर्ग-भिलाई और बिलासपुर और अन्य शहरों के लिए टैक्सी का किराया विमान में सफर करने के बराबर है। उदाहरण के लिए माना एयरपोर्ट से बिलासपुर दुर्ग-भिलाई तक निजी टैक्स में 3000 से 4000 रुपये किराया है, जबकि 5000 रुपये में विमान से रायपुर से दिल्ली का सफर किया जा सकता है। वर्तमान में एयरपोर्ट से एक या दो सिटी बसें ही चलती है। यह भी नियमित तौर पर संचालित नहीं है। सिटी बसों में यात्रियों को एयरपोर्ट से रायपुर आने में 50 रुपये किराया लगता है, जबकि निजी टैक्सियों में यह किराया लगभग 500 से 600 रुपये हैं। छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े एयरपोर्ट से सार्वजनिक परिवहन में लगातार खामियां लोगों के लिए परेशानी का कारण भी बनी हुई है।

सिटी बसों की हालात खराब, जरूरत नई बसों की

प्रदेश में सार्वजनिक परिवहन के क्षेत्र में सिटी बसों की स्थिति खराब है। वर्तमान में निगम के जरिए चलाई जा रही सिटी बसों की संख्या लगभग 50 हैं, जिसमें 17 बसें जर्जर स्थिति में हैं। नवा रायपुर में बीआरटीएस के अंतर्गत बसें संचालित हैं, लेकिन यह बसें सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के लिए आरक्षित हैं। सामान्य नागरिकों के लिए नवा रायपुर आने-जाने के लिए भी बसों की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं है। विशेषज्ञों के मुताबिक सिटी बसों की संख्या में वृद्धि के साथ ही अन्य जिलों से भी आवागमन की सुविधा होनी चाहिए।

चुनौती इसलिए क्योंकि प्रदेश में 44 प्रतिशत वन क्षेत्र

छत्तीसगढ़ में 44 प्रतिशत वन क्षेत्र हैं, जिसकी वजह से कई जिलों में अभी भी लगातार काम करने की आवश्यकता है, जिसमें बस्तर, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा आदि नक्सल प्रभावित जिले शामिल हैं। सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाला जिला दंतेवाड़ा है। अधिकारियों का कहना है कि बस्तर संभाग के सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बस्तर जैसे जिलों के दुर्गम इलाके धीरे-धीरे मुख्य धारा में शामिल होते जा रहे हैं।

16,670 करोड़ की लागत से सड़क और पुल बने

प्रदेश में कांग्रेस सरकार के कार्यकाल की स्थिति पर गौर करें तो बीते साढ़े चार वर्षों में 16 हजार 670 करोड़ रुपये की लागत से सड़क और पुलों का निर्माण किया गया है। विभिन्न् योजनाओं के अंतर्गत 7406 कार्य किए गए। इस पर लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों का कहना है कि किसी भी राज्य के विकास के लिए सड़कें लाइफलाइन होती है। आने वाले समय में यह सड़कें विकास के रास्ते खोलेगी। सार्वजनिक परिवहन के साथ ही यह व्यापार,पर्यटन के लिए यह मददगार साबित होगा।

छत्तीसगढ़ ट्रांसपोर्ट चैंबर के अध्यक्ष अमरीक सिंह आसरा का कहना है कि प्रदेश में सड़कों का जाल बिछा है। बस्तर, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा जैसे जिलों में और काम करने की आवश्यकता है। सार्वजनिक वाहनों की सुविधाओं का दायरा बढ़ाने से प्रदेश के आर्थिक विकास में भी तेजी आएगी।

छत्तीसगढ़ चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज के कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव का कहना है कि भारतमाला प्रोजेक्ट से लेकर राज्य सरकार की विभिन्न् परियोजनाओं के अंतर्गत सड़कों से जुड़ी अधोसंरचना का निर्माण हो रहा है, लेकिन शहरों के सार्वजनिक परिवहनों में काफी काम करने की आवश्यकता है। आम आदमी के साथ ही व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी सार्वजनिक परिवहनों में विकल्प बढ़ना चाहिए। इससे पर्यटन का भी विकास होगा।

Chaiपुर
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NU Desk

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