Shimla Agreement क्या है किन मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान में बनी थी सहमति, जानें क्यों होती है इसकी बार-बार चर्चा…

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसारन घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं। इसके जवाब में पाकिस्तान ने भी कई सख्त निर्णय लिए हैं—जैसे वाघा बॉर्डर को बंद करना, सार्क वीजा सुविधा स्थगित करना और भारतीय विमानों के लिए अपनी हवाई सीमा बंद करना।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने आनन-फानन में नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (NSC) की बैठक बुलाई, जिसमें भारत पर अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया। साथ ही, पाकिस्तान ने शिमला समझौते को रद्द करने की धमकी दी। इसी कारण शिमला समझौता एक बार फिर सुर्खियों में है। तो सवाल है: आखिर शिमला समझौता है क्या और इसका आज क्या महत्व है?
शिमला समझौते की पृष्ठभूमि: 1971 का भारत-पाक युद्ध...
1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच तब हुआ जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना ने भीषण अत्याचार किए। लाखों लोग शरण की तलाश में भारत आ गए। भारत ने सैन्य हस्तक्षेप किया, और युद्ध के अंत में पाकिस्तान की 93,000 सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस ऐतिहासिक जीत के बावजूद, भारत ने शांति को प्राथमिकता दी और पाकिस्तान को बातचीत के लिए आमंत्रित किया। इसके परिणामस्वरूप 1972 में शिमला समझौता हुआ।
शिमला समझौता: कब और किनके बीच?
भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के बीच यह समझौता 2 जुलाई 1972 को भारत के शिमला में हुआ था। यह समझौता सिर्फ युद्ध के परिणामों को निपटाने का दस्तावेज़ नहीं था, बल्कि भविष्य में शांति और सहयोग की नींव रखने का प्रयास भी था।
शिमला समझौते की मुख्य बातें...
- द्विपक्षीय समाधान का सिद्धांत
दोनों देशों ने सहमति जताई कि सभी विवाद आपसी बातचीत से हल किए जाएंगे—कोई तीसरा पक्ष नहीं होगा। - बल प्रयोग से परहेज़
भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य कार्रवाई न करने का वादा किया। - नई नियंत्रण रेखा (LoC)
युद्ध के बाद बनी नियंत्रण रेखा को दोनों देशों ने मान्यता दी, जो आज भी लागू है। - युद्धबंदियों और जमीन की वापसी
भारत ने बिना शर्त 93,000 पाक सैनिकों को रिहा किया और कब्जाई हुई अधिकांश जमीन लौटा दी।
भारत के लिए शिमला समझौते का महत्व...
भारत ने इस समझौते के जरिए कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा नहीं, बल्कि एक द्विपक्षीय विषय घोषित करवाया। यह भारत की कूटनीतिक जीत थी। 1948 के संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों की प्रासंगिकता को इस समझौते ने सीमित कर दिया, क्योंकि पाकिस्तान ने खुद द्विपक्षीयता को स्वीकार किया था।
क्या पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द कर सकता है?
तकनीकी तौर पर कोई भी देश किसी संधि से अलग हो सकता है, लेकिन इससे उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि और भरोसेमंद राष्ट्र के रूप में पहचान को नुकसान होता है। अगर पाकिस्तान इस समझौते को रद्द करता है।

कश्मीर पर बातचीत का आधार खत्म हो जाएगा। भारत भी किसी समझौते का पालन करने का बाध्य नहीं रहेगा। दोनों देशों की सेनाएं LoC पर अधिक आक्रामक हो सकती हैं भविष्य में किसी संघर्ष की स्थिति में विश्वास और स्थायित्व कमजोर पड़ सकता है।