सांसद गौरव गोगोई ने पेश किया केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव
नई दिल्ली। केंद्र सरकार के खिलाफ कांग्रेस सांसद तरुण गोगोई ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के आखिरी वर्ष में इसे लाया गया है।
इससे पहले 2018 में भी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, हालांकि सत्ता पक्ष के संख्या बल के सामने विपक्ष को हार का सामना करना पड़ा। मणिपुर में हिंसा के खिलाफ सदन और सड़क दोनों जगह विपक्ष हमलावर है। यहां हम बात करेंगे कि अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है।
संसद में अलग अलग सरकारों को मिलाकर कुल कितनी बार इसे पेश किया गया है। अगर लोकसभा के स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं तो आगे की क्या प्रक्रिया होती है। इसके साथ ही लोकसभा की मौजूदा गणित किसके पक्ष में है। अगर लोकसभा में सदस्य संख्या की बात करें तो एनडीए के पास 300 से अधिक सांसद हैं। सरकार में बने रहने के लिए जादुई आंकड़ा 272 का है।
अगर इस संख्या को देखें तो एनडीए के सामने किसी तरह की चुनौती नहीं है। लोकसभा में जब किसी विषय पर मतदान होता है तो वोटिंग के समय मौजूद सदस्यों की संख्या पर बहुमत का फैसला किया जाता है।
सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का अधिकार विपक्ष का होता है। सदन में विपक्ष का कोई भी सदस्य इसे पेश कर सकता है। हालांकि कुल 50 सांसदों का समर्थन जरूरी है। देश की आजादी से अब तक कुल 27 दफा इसे पेश किया गया है। 1963 में पहली बार तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू के खिलाफ इसे पेश किया गया था। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने सर्वाधिक 15 बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया था।
वहीं लाल बहादुर शास्त्री और पी वी नरसिम्हाराव की सरकार ने तीन तीन बार सामना किया था। अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने 1999 में एक दफा सामना किया और सरकार एक वोट से गिर गई। लोकसभा में जब अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जाता है तो स्पीकर बहस के लिए दिन और समय मुकर्रर करता है।
स्पीकर इस मोशन के संबंध में लोकसभा के नियम 198 सब रूल 2 और 3 के तहत मंजूरी देता है. दिन और समय मुकर्रर होने के बाद पेश करने वाला सदस्य बहस की शुरुआत करता है और आगे बहस का सिलसिला शुरू होता है जिसमें सत्ता और विपक्ष के दूसरे सदस्यों को बोलने का मौका मिलता है। आखिर में पीएम इस पर जवाब देते हैं। बहस की समाप्ति के बाद मतदान होता है। अगर सरकार अविश्वास प्रस्ताव में हार जाती है तो इस्तीफा देना पड़ता है। अगर फैसला सरकार के पक्ष में आता है तो सरकार आगे शेष कार्यकाल पूरी करती है।