खस की खेती ने दिया आजीविका का नया रास्ता, नदी किनारे की बंजर भूमि से बदली 368 महिलाओं की किस्मत

रायपुर। कुछ समय पहले तक महानदी के किनारे की रेतीली, अनुपजाऊ भूमि गांवों के लिए किसी काम की नहीं मानी जाती थी। खेती करना तो दूर, उस पर घास तक सही से नहीं उगती थी। लेकिन इसी जमीन ने अब 368 महिलाओं के जीवन में नई उम्मीद, नई कमाई और नया आत्मविश्वास पैदा किया है।धमतरी जिले की महिलाएं आज अपनी बदली हुई ज़िंदगी पर गर्व महसूस करती हैं।
यह बदलाव संभव हुआ वन मंत्री केदार कश्यप के निर्देशानुसार छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के अध्यक्ष श्री विकास मरकाम और जिला प्रशासन की संयुक्त पहल से। उन्होंने सोचा कि क्यों न इस अनुपयोगी रेतिली भूमि को आजीविका से जोड़ा जाए और समाधान मिला औषधीय पौधा खस की खेती के रूप में, जो ऐसी जमीन में आसानी से पनपता है और जिसे बाजार में उच्च मांग मिलती है।
उल्लेखनीय है कि जुलाई-अगस्त माह में जिले के 20 ग्रामों की 35 महिला स्व-सहायता समूहों ने उत्साह के साथ 90 एकड़ भूमि पर खस का रोपण किया। मंदरौद से लेकर दलगहन, गाडाडीह से सोनवारा, देवरी से मेघा तक हर गांव में महिलाएं पहली बार औषधीय खेती की नई राह पर कदम रख रही थीं।



