समयमान वेतमान न मिले तो कानूनी प्रविधानों के तहत दायर कर सकते हैं याचिका

बिलासपुर। शासकीय कर्मचारियों और अधिकारियों को अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए कानून में प्रविधान किए गए हैं। इसके अलावा राज्य शासन द्वारा भी समय-समय पर नियम कानून के साथ ही मापदंड भी तय किया जाता है। आमतौर यह देखा गया है कि शासन द्वारा तय मापदंड और कानूनी प्रविधान के बाद भी नियमों और निर्देशों को अमलीजामा पहनाने और प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन करने वाली एजेंसी जानबूझकर फाइल को दबाते हैं या फिर क्रियान्वयन में विलंब करते हैं। यह एक नहीं कई स्तरों पर होता है।
इसका नकारात्मक असर सरकार के कामकाज पर पड़ता है। इससे सरकार की छवि पर भी असर पड़ता है। अधिवक्ता शशिकला नायडू बताती हैं कि इस तरह का अड़चन आए और दिक्कतें पेश होने लगे तो न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं। न्याय के मंदिर में न्याय मिलता ही है। अधिवक्ता नायडू बताती हैं कि वर्तमान में समयमान वेतनमान को लेकर कर्मचारियों के बीच कुछ ज्यादा ही असंतोष देखा जाता है।
अगर इस तरह की दिक्कतें हैं तो तय मापदंड और नियम के बाद भी समयमान वेतनमान ना मिले तो हाई कोर्ट के याचिका दायर कर सकते हैं। समयमान वेतनमान के संबंध में अधिवक्ता शशिकला का कहना है कि शासकीय कर्मचारियों को 10 वर्ष की सेवावधि पूर्ण होने पर प्रथम और 20 वर्ष की सेवावधि पूर्ण होने पर द्वितीय समयमान वेतनमान का लाभ मिलता है।
राज्य शासन द्वारा तय नियमों व मापदंड के अनुसार शासकीय कर्मचारियों को इसकी पात्रता दी गई है। आमतौर पर यह शिकायत रहती है कि शासकीय कर्मचारियों को तय समय पर समयमान वेतनमान का भुगतान नहीं किया जाता है। इसके लिए विभाग प्रमुख के अलावा मंत्रालय स्तर पर बहानेबाजी भी की जाती है और तत्कालीक कारण भी गिना दिए जाते हैं।
कर्मचारी संगठन द्वारा दबाव बनाए जाने की स्थिति में कभी वेतनवृद्धि, पदोन्नति तो कभी क्रमोन्नति का आधार लेकर परेशान किया जाता है। अगर इस तरह की स्थिति बन रही है और विभागीय अधिकारी परेशान करने की नियत से इस तरह का विभागीय प्रपंच कर रहे हों तो हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी बात रखी जा सकती है। यह भी देखने में आया है कि पदोन्नति मिलने की स्थिति में प्रथम व द्वितीय समयमान वेतनमान को निरस्त कर दिया जाता है।
हाई कोर्ट में याचिका दायर करने से पहले ये जरूरी
अधिवक्ता नायडू का कहना है कि हाई कोर्ट में याचिका दायर करने से पहले कुछ जरूरी विभागीय औपचारिकता को पूरी करना आवश्यक है। सबसे पहले विभागीय स्तर पर समयमान वेतनमान की मांग करते हुए अभ्यावेदन पेश करना चाहिए। अभ्यावेदन पेश करने के बाद पखवाड़ेभर विभागीय कार्रवाई की प्रतीक्षा की जानी चाहिए। विभाग की तरफ से अभ्यावेदन पर कार्रवाई न करने की स्थिति में एक स्मरण पत्र भी देना चाहिए। इससे आगे चलकर दस्तावेज के मामले में हम मजबूत रहेंगे। स्मरण पत्र देने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है तो अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर करें। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट द्वारा समय सीमा में प्रकरण के निराकरण का निर्देश जारी करता है।
अवमानना याचिका भी कर सकते हैं दायर
अधिवक्ता शशिकला का कहना है कि हाई कोर्ट के निर्देश के बाद भी अगर विभाग द्वारा प्रकरण का निराकरण कोर्ट द्वारा निर्धारित अवधि में नहीं किया जाता है तो न्यायालयीन आदेश की अवहेलना का आरोप लगाते हुए संबंधित अधिकारी के खिलाफ न्यायालयीन अवमानना का मामला दायर कर सकते हैं। अवमानना याचिका में अगर आपके द्वारा पेश किए गए तथ्य सही हैं तो न्याय मिलता है अन्यथा कोर्ट से राहत नहीं मिल पाती। अगर आपको लगता है कि आपका प्रकरण मजबूत है तो हाई कोर्ट में ही रिट याचिका दायर कर सकते हैं।