छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान है हरेली त्योहार – जानिए क्यों विशेष है यह त्यौहार

छत्तीसगढ़ का हरेली त्योहार न केवल राज्य की समृद्ध कृषि परंपरा का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति और जीवन के गहरे संबंध को भी दर्शाता है। हर वर्ष श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व किसानों और ग्रामीणों का पहला त्योहार होता है, जो खेतों में हरियाली के आगमन का संकेत देता है।
इस दिन कृषि औजारों जैसे नांगर, गैंती, फावड़ा, कुदाली आदि की पूजा की जाती है। किसान अपने गाय-बैलों को नहलाकर, साफ-सुथरा करते हैं और कुलदेवता की पूजा के साथ घर में पकवान जैसे गुड़ का चीला, ठेठरी, खुरमी बनाते हैं।
हरेली पर्व प्रकृति की पूजा और अनिष्ट से रक्षा का भी प्रतीक है। घरों के दरवाजों पर नीम की टहनियां और भेलवा की शाखाएं लगाई जाती हैं, जिससे कीट और बीमारियों से बचाव होता है। लोहार नीम की पत्तियों के साथ कील ठोंककर आशीर्वाद देते हैं।
बच्चों और युवाओं में इस दिन का आकर्षण गेंड़ी दौड़ होती है। वे बांस की बनी गेंड़ी चढ़कर पूरे गांव में घूमते हैं। नारियल फेंक प्रतियोगिता जैसे पारंपरिक खेल गांव की चौपालों को उत्सव में बदल देते हैं।
हरेली त्योहार 2025 न केवल परंपराओं की जड़ से जुड़ने का मौका है, बल्कि यह याद दिलाता है कि हरियाली, स्वास्थ्य और समाज के सामूहिक जुड़ाव में ही जीवन की समृद्धि है। यह पर्व छत्तीसगढ़ की आत्मा का उत्सव है – रंग, रीति और संस्कृति से भरा हुआ।