राज्यपाल से मुलाकात के बाद रायपुर में राजनीतिक हलचलें तेज, CM साय निकले दिल्ली

रायपुर। बीते शनिवार को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की राज्यपाल विश्वभूषण हरिचंदन से मुलाकात हुई। सोमवार को मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे ने रायपुर सहित पूरे प्रदेश का तापमान बढ़ा दिया है। बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद मंत्री बनने के लिए खाली पड़े दो पदों के लिए तोड़-जोड़ गुणा-गणित शुरु हो गया है।
सवाल कई हैं सबसे बड़ा सवाल नए और पुराने का है, उसके बाद जातीय और क्षेत्रीय समीकरण । सबसे बड़े सवाल में ही बाकी दो सवालों उत्तर छिपा है। एक बात तय है कि साहू समाज से अब कोई नहीं होगा, उपमुख्यमंत्री औऱ केन्द्र में राज्यमंत्री के बनने के बाद साहू कोटा फुल हो गया है। इसके साथ ही बिलासपुर का कोटा भी फुल है और राज्य के उत्तरी हिस्से यानी कि बिलासपुर और सरगुजा संभाग भी फुल है । इन जगहों से सिर्फ रिप्लेसमेन्ट ही होना है यदि होता है ,तो ।कुर्मी में समाज के बड़े दो नामों मे से किसी एक की एन्ट्री होगी या फिर एक से काम चलेगा। यदि किरण देव सिंह मंत्री बनते हैं तो जिसकी संभावना सबसे ज्यादा दिखाई दे रही है ,तो फिर क्या धरमलाल कौशिक या अजय चंद्राकर प्रदेश अध्यक्ष बनेंगे।
क्या बस्तर से किसी आदिवासी जिसमें लता उसेण्डी या विक्रम उसेण्डी या दंतेवाड़ा के चैतराम अटामी का नाम हो सकता है। लता ने उड़ीसा में औऱ बस्तर लोकसभा में बहुत मेहनत की है। महिला और आदिवासी के साथ बस्तर यानि कि एक के साथ तीन-तीन समीकरणों को साधा जा सकता है, व्यवहार में बहुत शालीन हैं, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। या फिर कांग्रेस की तर्ज पर बस्तर से किसी को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है।
अब बात रायपुर संभाग और राजधानी रायपुर की, जहां से 15 साल दो-दो मंत्री रहे हैं तो क्या राजधानी रायपुर में सूखा रहेगा या फिर राजेश मूणत और पुरन्दर मिश्रा में से कोई एक मंत्री बनेगा। भाजपा का मजबूत खेमा राजेश मूणत के साथ है तो पुरन्दर के साथ तगड़ा उड़ीसा कनेक्शन है। कहने को तो बिलासपुर संभाग फुल है लेकिन अमर अग्रवाल के लिये जिस शिद्दत से पूर्व प्रदेश प्रभारी ओम माथुर लगे हुए थे ,तो अभी ओम माथुर के कारण अमर की संभावना भी बनी हुई है। नई शराब नीति में अमर के इनपुट के आधार पर एफ एल-10 में हाल में जो बड़ा परिवर्तन दिखाई दिया है, उससे अमर के महत्व का अंदाज लगाया जा सकता है।
लोकसभा चुनाव में राजनांदगांव में राजेश मूणत और कांकेर में अजय चंद्राकर और विक्रम उसेण्डी की मेहनत के कारण इन तीनों नामों की संभावना है ,लेकिन बड़ी पार्टियों में कोई सेट फार्मूला नहीं होता है। लेकिन नई सरकार में एक बड़ा और स्पष्ट संदेश नई लोगों को मौका देने का है, इसलिए बड़े-बड़े राजनीतिक विश्लेषक भी कुछ भी कहने से बचना चाह रहे हैं।
दुर्ग संभाग में भाजपा के लिए राह आसान है क्योंकि यहां से सिर्फ दुर्ग से गजेन्द्र यादव और पण्डरिया से भावना वोहरा के नामों की चर्चा है। भावना वोहरा के लिए लोकसभा चुनाव के परिणाम रास्ते में अवरोध हैं, तो प्रदेश में भाजपा-कांग्रेस से जीते 4 यादव विधायकों में से सिर्फ 1 ही विधायक भाजपा से है। कांग्रेस ने जिस तरह से विधानसभा के बाद लोकसभा में यादव उम्मीदवारों पर दांव लगाया है ,उससे बेलेन्स करने के लिए भाजपा गजेन्द्र यादव को मंत्री बना सकती है, क्योंकि दुर्ग से एक-दो मंत्रियों की भाजपा की परम्परा रही है। गजेन्द्र का आरएसएस से गहरा नाता और पिछड़ों में यादव समाज से होना उनके कैबिनेट में जगह पाने की मुख्य वजहें हो सकती हैं।