छत्तीसगढ़ में शांति की नई सुबह: पूर्व माओवादी अब बन रहे आत्मनिर्भर, आर्ट ऑफ लिविंग दे रहा नई दिशा

बरसों तक जंगलों में हिंसा और भय के साए में जिंदगी जी चुके 30 पूर्व माओवादी अब छत्तीसगढ़ में शांति और आत्मनिर्भरता की राह पर हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की संवेदनशील सरकार ने इन लोगों के जीवन में उम्मीद की किरण जगाते हुए पुनर्वास का एक नया मॉडल पेश किया है — जहां आजीविका के साथ-साथ मानसिक सशक्तिकरण पर भी फोकस किया जा रहा है।
आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़कर पा रहे हैं मानसिक स्थिरता...
छत्तीसगढ़ शासन के सहयोग से आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट ऑफ लिविंग इन पूर्व माओवादियों के मानसिक स्वास्थ्य सुधार में जुटी है। जंगलों में संघर्ष के दौर से गुजरे इन लोगों के मन में वर्षों से जमा भय, तनाव और नकारात्मकता अब धीरे-धीरे मिट रही है। प्रशिक्षण शिविरों में वे योगासन, प्राणायाम और ‘सुदर्शन क्रिया’ जैसी तकनीकों का अभ्यास कर रहे हैं, जिससे उनमें आत्मविश्वास, संतुलन और जीवन के प्रति सकारात्मक सोच विकसित हो रही है। प्रशिक्षकों के अनुसार यह केवल योग या व्यायाम नहीं, बल्कि आत्म-सम्मान और आंतरिक शांति की पुनर्स्थापना की प्रक्रिया है।

कौशल विकास से मिल रही नई पहचान...
बीजापुर जिले से आत्मसमर्पण करने वाले ये सभी 30 पूर्व माओवादी वर्तमान में जगदलपुर के आड़ावाल लाइवलीहुड कॉलेज में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के तहत उन्हें गेस्ट सर्विस एसोसिएट का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिसमें ग्राहक संवाद, होटल प्रबंधन और सॉफ्ट स्किल्स जैसी आधुनिक दक्षताएं सिखाई जा रही हैं।
सरकार का लक्ष्य स्पष्ट है — इन्हें बस्तर के होमस्टे, रिसॉर्ट और पर्यटन स्थलों से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाना, ताकि यह नई राह बस्तर के पर्यटन विकास की दिशा में भी मील का पत्थर साबित हो सके।
हथियार छोड़ अब जीवन को दे रहे नई परिभाषा...
जो लोग कभी जंगलों में बंदूक के साए में जीते थे, वे अब शांति, सेवा और स्वावलंबन का संदेश दे रहे हैं। उनका कहना है कि अब वे अपने अनुभवों को समाज की भलाई में लगाना चाहते हैं। आर्ट ऑफ लिविंग की यह पहल न सिर्फ पुनर्वास का उदाहरण है, बल्कि मानवता की शक्ति और बदलाव की संभावना का जीवंत प्रमाण भी बन गई है।



