ताने और तंज को इन आठ थर्ड जेंडरों ने बनाई ताकत, लिखी बदलाव की कहानी, अब संभालेंगे सुरक्षा

रायपुर। घर-घर जाकर बधाई के गीत गाने वालों को अब बधाइयां मिल रही हैं। समाज जिन्हें ‘दूसरी’ नजरों से देखता आ रहा था, उन्हें अब सलाम कर रहा है। दरअसल, छत्तीसगढ़ में पहली बार राजधानी रायपुर के थानों में आठ थर्ड जेंडरों की पदस्थापना की गई है। बकायदा आरक्षक की ट्रेनिंग लेकर थानों में तैनात इन थर्ड जेंडरों ने अपने धैर्य, मेहनत, सोच और शिक्षा के दम पर यह मुकाम हासिल किया है।
उनका कहना है कि लोगों के तानों, उपहास और उपेक्षा को ही उन्होंने अपनी ताकत बनाई और यह प्रमाणित कर दिखाया कि वे किसी से कमतर नहीं हैं। पदस्थापना के बाद इस बात को लेकर वे गौरवान्वित हैं कि अब शहर की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालेंगे। उनका कहना है कि कानून की रक्षा करने के साथ ही थर्ड जेंडरों के प्रति समाज का नजरिया बदलने की भी पूरी कोशिश करेंगे।
राजधानी के आजाद चौक थाने में तनुश्री साहू, गोलबाजार में कृषि तांडी, उरला में सोनिया जंघेल, पुरानी बस्ती में निशु क्षत्रिय, सिविल लाइन में शिवन्या पटेल, टिकरापारा में शंकर यादव उर्फ सबुरी शंकर, गुढ़ियारी में राकेश सोरी और खम्हारडीह थाने में दीपक यादव उर्फ दिप्सा की पदस्थापना की गई है।
एसएसपी प्रशांत अग्रवाल ने स्वयं इनसे मुलाकात कर बधाई और शुभकामनाएं देते हुए उत्साह बढ़ाया है। इतना ही नहीं, उन्होंने थाना प्रभारी समेत पूरे स्टाफ को कहा है कि इन्हें पूरा सहयोग किया जाए। नईदुनिया इनमें से तीन आरक्षकों बात की है, जो यहां प्रस्तुत है।
एक बार आत्महत्या की कोशिश की, बच गया तो लगा कि जीवन में कुछ करके दिखाना है
खम्हारडीह थाने में पदस्थ दिप्सा ने बताया कि बचपन से उसका शरीर तो पुरुष का था, लेकिन हाव-भाव, सोच-विचार लड़कियों जैसा। मां की चूड़ियां पहनती थी, बिंदी लगाती थी। लड़कियों के साथ ही खेलना उसे अच्छा लगता था। स्वजन को यह अटपटा लगता, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें यह बात समझ में आ गई है कि मेरे में हार्मोंस से जुड़ी समस्या है। स्कूल जाती तो बच्चे ही नहीं, कभी-कभी शिक्षक भी हंसी उड़ा देते। आरडी तिवारी स्कूल में मिडिल की पढ़ाई की, लेकिन आठवीं के बाद ताने और उपहास सुन-सुनकर स्कूल जाना छोड़ दी।
घरवाले कहते कि कुछ करके दिखाओ। एक बार आत्महत्या की भी कोशिश की, लेकिन किसी ने समय पर अस्पताल पहुंचा दिया और जिंदगी दोबारा मिल गई। इसके बाद लगा की जिंदगी को यूं ही नहीं गंवाना है। जीवन में कुछ करके दिखाना ही है। इसके बाद प्राइवेट पढ़ाई कर 10वीं पास की। काम खोजना शुरू की। काफी संघर्ष के बाद मेडिकल कालेज के एनाटमी डिपार्टमेंट में स्वीपर का काम मिला।
इसी दौरान हमारे समुदाय के लिए काम करने वाली थर्ड जेंडर विद्या राजपूत से मुलाकात हुई। उन्होंने नगर निगम में काम दिला दिया। 2017 में आरक्षक भर्ती में थर्ड जेंडरों को भी मौका मिला। जमकर मेहनत की और आज यहां हैं। इसके पहले पुलिस लाइन माना में थीं। दिप्सा ने बताया कि खम्हारडीह थाने में पहले दिन प्रभारी कुमार गौरव साहू ने स्वागत किया। कहा यहां भरपूर मदद मिलेगी। पूरे स्टाफ ने बधाई दी।
कभी धैर्य नहीं खोया
सबुरी शंकर और तनुश्री साहू की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। इनका कहना है कि अपना अपमान तो उन्हें स्वीकार था, लेकिन उनके साथ स्वजन की भी बदनामी होती थी, जो उन्हें बर्दाश्त नहीं होती थी। लेकिन धैर्य और हिम्मत नहीं खोया। उन्होंने कहा कि सभी स्वजन को बच्चों की परेशानियों का समझना चाहिए। कोरबा निवासी सुबरी शंकर अभी समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिस सम्मान के लिए वे अब तक तरसते रहे, पुलिस की वर्दी अब यह सम्मान दिलाएगी।