नर्मदा नदी के संरक्षण और जल के शत-प्रतिशत उपयोग की चुनौती

भोपाल। मध्य प्रदेश की जीवन रेखा है नर्मदा नदी। सिंचाई, बिजली के साथ-साथ पेयजल की आपूर्ति का सबसे बड़ा माध्यम है। अब मध्य प्रदेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती मां नर्मदा के संरक्षण और हमारे हिस्से में आने वाले जल के शत-प्रतिशत उपयोग की है।
बढ़ गया जल का दोहन
नदी के आसपास जंगलों की कटाई और अवैध खनन ने नर्मदा की जैव संपदा और पारिस्थितिकी तंत्र को भी प्रभावित किया है। जगह-जगह पाइप लाइन डालकर नर्मदा जल परियोजनाओं के कारण भी जल का दोहन बढ़ा है। अत्यधिक दोहन के कारण गर्मी में नदी की धार टूटने लगी है। दूसरी तरफ अब तक हम नर्मदा जल का शत-प्रतिशत उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। इसके चलते आशंका यह भी है कि आने वाले दिनों में हमारे राज्य के हिस्से के जल में कटौती न हो जाए।
जल विवाद न्यायाधिकरण का यह है आदेश
जल विवाद न्यायाधिकरण ने मध्य प्रदेश के 18.25 मिलियन एकड़ फीट जल का उपयोग करने के लिए दिसंबर 2024 तक का समय दिया है। इस अवधि में हम जितने जल का उपयोग कर पाएंगे, उस पर हमारा अधिकार बना रहेगा वर्ना यह अन्य राज्यों को आवंटित कर दिया जाएगा। सभी प्रयास के बाद आज 17.62 मिलियन एकड़ फीट जल के उपयोग के लिए जो योजनाएं बनाईं थी वे या तो निर्मित हो चुकी हैं या फिर निर्माणाधीन हैं। यह तो जल उपयोग की बात हुई पर इसका दूसरा पहलू भी है, जो नदी की सेहत से जुड़ा है। अवैध कटाई और रेत खनन बड़ी समस्या है, जो नदी को प्रभावित कर रहा है। इस पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। इस पर किसी सरकार ने नहीं दिया।
प्रतिबंध के बाद भी हो रहा रेत खनन
स्थिति यह है कि वर्षाकाल में रेत खनन प्रतिबंधित होने के बाद धड़ल्ले से खनन हो रहा है। दरअसल, जल उपयोग को लेकर जिस तरह कार्ययोजना बनाकर काम किया जाना था, उसको लेकर गंभीरता नहीं दिखाई गई। आनन-फानन में पिछले वर्ष 26 हजार 716 करोड़ रुपये की लागत वाली 12 सिंचाई परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं। इनके क्रियान्वयन से मध्य प्रदेश के हिस्से के 3.50 एमएएफ नर्मदा जल का उपयोग सुनिश्चित होगा और पांच लाख 90 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता विकसित होगी।
बरगी व्यपवर्तन परियोजना निर्माणाधीन
उधर, रानी अवंती बाई लोधी सागर बांध का दांया तट मुख्य नहर से जबलपुर, कटनी, सतना और रीवा जिले में सिंचाई के लिए बरगी व्यपवर्तन परियोजना निर्माणाधीन है। इसमें 12 किलोमीटर लंबी टनल का निर्माण होना है। इसमें से 9.3 किलोमीटर बन चुकी है। मंडला जिले में हालोन नदी पर बांध और नहर प्रणाली निर्माणाधीन है। एजेंसी ने समय पर काम पूरा नहीं किया, इसलिए उसे हटाकर शेष काम दूसरी एजेंसी से कराया जा रहा है।
इन परियोजनाओं पर काम
बंजलवाड़ा उद्वहन माइक्रो सिंचाई परियोजना, चौंडी जामनिया परियोजना, बलकवाड़ा, अंबा रोड़िया, सिमरोल अंबाचंदन, कालीसिंध चरण एक और दो, नर्मदा पार्वती चरण एक, दो, तीन और चार, जावर, नर्मदा क्षिप्रा, पीपरी, नर्मदा-झाबुआ-पेटलावद-थांदला-सरदारपुर, डही, बदनावर परियोजनाओं पर काम चल रहा है।
सिंचाई के साथ पेयजल की आपूर्ति
नदी से सिंचाई के साथ जबलपुर, नर्मदापुरम(होशंगाबाद), भोपाल, देवास सहित अन्य जिलों में पेयजल की आपूर्ति भी की जा रही है। पेयजल आपूर्ति के लिए दूर से पानी लाने के कारण संबंधित निकायों का खर्चा बढ़ता जा रहा है। नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक योजना के माध्यम से इंदौर के उज्जैनी गांव के पास क्षिप्रा के उद्गम स्थल से जल प्रवाहित किया जा रहा है।
इच्छा शक्ति की कमी
तथ्यों से स्पष्ट है कि नर्मदा नदी पर निर्भरता तो हमारी अधिक है पर न तो इसके जल के समय पर उपयोग को लेकर ठोस काम हुआ और न ही इसके स्वास्थ्य की चिंता की गई। नर्मदा नदी से लगे इलाकों में वनों की कटाई किसी से छुपी नहीं है। मशीनों से अवैध रेत खनन भी धड़ल्ले से चल रहा है। जबकि, सरकार नर्मदा नदी की रेत के खनन में मशीनों के उपयोग को प्रतिबंधित कर चुकी है। दरअसल, नर्मदा के संरक्षण की बात तो सभी सरकार करती हैं पर इसके लिए जो इच्छा शक्ति दिखाई जानी चाहिए, वह अब तक किसी ने नहीं दिखाई है। यही कारण है कि ग्रीष्मकाल में नर्मदा की धार तक टूट जाती है।
इनका कहना है
नर्मदा नदी में गंदा पानी न मिले, इसके लिए नगरीय निकायों ने प्रयास किए और दावे भी होते हैं पर नाले अभी भी नदी में मिल रहे हैं। अवैध कटाई का असर जल प्रवाह पर पड़ रहा है। सहायक नदियों की ग्रीष्मकाल में धार टूट जाती हैं। रेत खनन बीच नदी से होने लगा है। इससे पूरा पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा रहा है। जल उपयोग के लिए सुनियोजित तरीके से जिस गति से काम होना चाहिए, वो भी नहीं हुआ, जिससे परियोजनाओं की लागत भी बढ़ी। सरकार को चाहिए कि समयसीमा में नर्मदा जल का शत-प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित हो और नदी को नुकसान भी न पहुंचे।
– आरके श्रीवास्तव, जल विज्ञानी