46 साल बाद कोर्ट ने सुनाई किसी को फांसी की सजा, 25 अक्टूबर 1978 को रायपुर सेंट्रल जेल में बैजू नामक कैदी को दी गई थी फांसी…

रायपुर। रायपुर के सेंट्रल जेल में 25 अक्टूबर 1978 को बैजू नामक कैदी को फांसी दी गई थी। जिसके 46 साल बाद आज एक बार फिर कोर्ट ने किसी दोषी को फांसी की सजा सुनाई गई है। मामला एकतरफा प्यार से जुड़ा हुआ है। दरअसल एकतरफा प्यार में महिला के चार साल के बच्चे को जिंदा जलाने वाले को फांसी की सजा दी जाएगी। बता दें कि राजधानी रायपुर के उरला इलाके में अप्रैल 2022 की सुबह मासूम पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी गई थी। दोषी पंचराम को कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा सुनाई है। पुलिस को जांच में पता चला था कि वारदात को अंजाम देने वाला पंचराम बच्चे की मां से प्यार करता था।
उरला इलाके से 5 अप्रैल 2022 की सुबह हर्ष नाम के 4 साल के बच्चे का किडनैप हुआ था। पड़ोस में रहने वाले पंचराम ने उसे किडनैप किया था। बच्चे के पिता जयेंद्र, उरला इलाके में पूर्व पार्षद अशोक बघेल के मकान में किराए से रहते हैं।
आरोपी पंचराम भी वहीं किराएदार था। वो अपनी मां के साथ यहां अकेला रहता था। कुछ साल पहले उसकी पत्नी उसे छोड़कर चली गई थी। पंचराम, जयेंद्र के बच्चों के साथ घुला मिला था। मासूम हर्ष को अक्सर अपनी बाइक पर घुमाया करता था। इसी भरोसे की वजह से जब हर्ष को पंचराम लेकर गया तो किसी ने रोका नहीं।

देर शाम तक बच्चा और पंचराम नहीं लौटा तो मामला थाने पहुंचा। हर्ष को ढूंढने के दौरान, पुलिस को उसकी जली हुई लाश मिली है। उसे पंचराम ने बेमेतरा ले जाकर श्मशान में जिंदा जला दिया था। पुलिस ने पंचराम को नाकपुर से पकड़ लिया।
पुलिस ने पंचराम को पकड़ा तो बच्चे की हत्या और उसकी मां से प्यार की बातें सामने आईं। पता चला कि, दोषी पंचराम बच्चे की मां से एक तरफा प्यार करता था। हर्ष की मां उससे बातचीत भी नहीं करती थी। बच्चे की मां को सबक सिखाने के लिए उसने बच्चे को मार दिया।
कोर्ट बोला - समाज में रहने लायक नहीं...
कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोग समाज में रहने लायक नहीं हैं। इस दौरान हत्यारा झूठ बोलता रहा, पंचराम ने हर्ष के साथ उसके बड़े भाई को भी जलाकर मारने की साजिश रची थी। वह दोनों को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले जा रहा था, लेकिन बड़े भाई ने जाने से मना कर दिया, जिससे उसकी जान बच गई।
रायपुर जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जब हत्यारे को कोर्ट रूम में सजा सुना रहे थे, तब पंचराम हाथ बांधकर जज का आदेश सुन रहा था। जब कोर्ट आया तो उसके पैरों में चप्पल थी, लेकिन फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद पंचराम गेंड्रे अपनी चप्पल कोर्ट रूम के बाहर ही छोड़ गया।