बदलता बस्तर: लाल आतंक की धरती अब रौशनी, विकास और उम्मीदों से जगमगा रही है

रायपुर। छत्तीसगढ़ की इस बार की दिवाली कुछ खास है — क्योंकि बस्तर बदल रहा है। कभी गोलियों की गूंज और डर का प्रतीक रहा यह इलाका अब दीयों, पटाखों और उम्मीदों की रौशनी से जगमगा उठा है। वो बस्तर, जहां कभी माओवादी हिंसा का साया था, आज वहां सड़कों का निर्माण हो रहा है, पुलों की ढलाई चल रही है, और बच्चे फिर से स्कूल जाने लगे हैं। यह बदलाव अचानक नहीं आया, बल्कि केंद्र और राज्य सरकारों की संयुक्त कोशिशों और नक्सल उन्मूलन के ठोस संकल्प का परिणाम है।

अमित शाह की डेडलाइन से बदला माहौल...
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सलवाद खत्म करने के लिए 31 मार्च 2026 की समयसीमा तय की थी। इसके बाद दिसंबर 2023 से ही बस्तर में नक्सल विरोधी अभियान तेज़ कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि अब तक 450 से ज्यादा माओवादी मारे गए हैं, जबकि 1500 से अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। सिर्फ 15 से 18 अक्टूबर के बीच 300 से ज्यादा नक्सलियों ने विकास की मुख्यधारा से जुड़कर पुनर्वास योजनाओं का लाभ लिया है। इस बार बस्तर की दीपावली सचमुच ‘गोलियों से दीयों तक’ की यात्रा की कहानी कह रही है।
52 हजार करोड़ के निवेश से नई तस्वीर...
बस्तर के विकास के लिए सरकार ने ₹52,000 करोड़ रुपये के निवेश प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी है। खनन, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, पर्यटन और एमएसएमई क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम चल रहा है। सबसे बड़ा निवेश एनएमडीसी की ₹43,000 करोड़ की परियोजनाओं के रूप में हो रहा है। साथ ही रेलवे और सड़क परियोजनाओं पर भी काम तेज़ी से जारी है।

नई औद्योगिक नीति से खुला विकास का रास्ता...
छत्तीसगढ़ सरकार की नई औद्योगिक नीति बस्तर में बदलाव की रीढ़ बन रही है। अब यहां सिर्फ उद्योग नहीं, बल्कि विश्व बाजार से जुड़ी स्थानीय पहचान बन रही है — ढोकरा कला, घड़वा धातु कला, बांस व लकड़ी के उत्पाद, वस्त्र और हस्तशिल्प अब बस्तर के ब्रांड बन रहे हैं। महिला समूहों, बुनकरों और शिल्पकारों को वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण दिया जा रहा है ताकि वे अपना उद्योग खड़ा कर सकें।

पर्यटन और संस्कृति को मिल रही नई उड़ान...
सरकार ने बस्तर की खूबसूरती को दुनिया के मानचित्र पर लाने की पहल शुरू की है। होमस्टे, ईको-टूरिज़्म और सांस्कृतिक महोत्सवों को बढ़ावा दिया जा रहा है। जनजातीय समुदायों को सीधे इन योजनाओं से जोड़ा जा रहा है ताकि वे अपने नृत्य, गीत, त्यौहार और कला के माध्यम से आय के नए अवसर पा सकें। अब बस्तर के युवा अपने जिले में ही रोजगार और उद्यमिता के नए रास्ते देख रहे हैं। स्थानीय उत्पादों को आधुनिक तकनीक और मार्केटिंग से जोड़कर उन्हें वैश्विक बाजारों तक पहुंचाने की तैयारी चल रही है।
दीयों की रौशनी में झलकता नया बस्तर...

जहां कभी लाल आतंक की रातें अंधेरी थीं, वहां अब दीपावली की जगमगाहट है। बस्तर अब सिर्फ एक क्षेत्र नहीं, बल्कि भारत के आत्मविश्वास और पुनर्जागरण की प्रतीक कहानी बन चुका है।