छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का आत्मसमर्पण जारी, पूर्व नक्सलियों ने कमांडरों को लिखा भावनात्मक पत्र — ‘अब फालतू में क्यों मरना है’

रायपुर। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की सख्त चेतावनी और तय डेडलाइन के बाद छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के आत्मसमर्पण का सिलसिला तेज़ हो गया है। अब इस बीच एक नया पत्र सामने आया है जिसने सबका ध्यान खींच लिया है।
पूर्व नक्सली जानसी और जैनी ने अपने साथियों और नक्सल कमांडर बलदेव और ज्योति को पत्र लिखकर मुख्यधारा में लौटने की अपील की है। पत्र में दोनों ने लिखा है —
“अब फालतू में क्यों मरना है… जंगल में रहकर सिर्फ बीमारी, डर और मौत ही मिलती है। मुख्यधारा में आने पर सुविधाएं भी हैं, इनाम भी मिलेगा और जिंदगी भी।”
“हथियार छोड़ो, जिंदगी अपनाओ” — जैनी का संदेश...
हथियार छोड़ चुकी पूर्व नक्सली जैनी ने अपने पत्र में लिखा कि अब नक्सल आंदोलन का कोई औचित्य नहीं बचा है। उन्होंने लिखा —
“प्रिय बलदेव भैया, आप जंगल में परेशान रहते हैं, बीमार हैं और हर दिन मौत का डर झेलते हैं। अब सोचिए, सब लोग सरेंडर कर चुके हैं। सोनू दादा, उसके सदस्य और एसीडीवीसी कमांडर तक मुख्यधारा में लौट आए हैं। आप भी आइए, सरकार सभी सुविधाएं दे रही है। इनाम भी मिलेगा और जीवन फिर से शुरू करने का मौका भी।”

उन्होंने आगे लिखा कि अब ओडिशा और छत्तीसगढ़ सीमा पर नक्सली संगठन लगभग खत्म हो चुके हैं।
“अकेले रहकर क्या कर लोगे? फालतू में क्यों मरना है, शांति से जिंदगी बिताओ।”
केंद्रीय समिति ने किया निष्कासन...
मुख्यधारा से जुड़ने वाले पूर्व शीर्ष नक्सली सोनू और सतीश को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केंद्रीय समिति ने हाल ही में पार्टी से निष्कासित कर दिया है। सूत्रों के अनुसार, संगठन अब लगातार कमजोर पड़ रहा है और कई क्षेत्रीय कमांडर आत्मसमर्पण की तैयारी में हैं।
बड़े स्तर पर आत्मसमर्पण की लहर...
17 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ में 210 नक्सलियों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया था। इनमें पोलित ब्यूरो सदस्य रूपेश, सोनू दादा, प्रभाकर जैसे कुख्यात नक्सली शामिल थे, जिन पर करोड़ों रुपये के इनाम घोषित थे।
इससे एक दिन पहले 16 अक्टूबर को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में भी नक्सली नेता मल्लौजुला वेणुगोपाल राव (उर्फ भूपति/सोनू दादा) ने 60 साथियों के साथ हथियार डाल दिए थे।
अब जंगल नहीं, विकास की राह...
विश्लेषकों का कहना है कि सरकार की सरेंडर नीति और पुनर्वास योजनाओं का असर अब जमीनी स्तर पर दिखने लगा है।
नक्सलियों के लगातार आत्मसमर्पण से संकेत साफ हैं — जंगल का रास्ता छोड़ अब वे विकास की राह पर लौटना चाहते हैं।