बिहार SIR पर सुप्रीम कोर्ट में EC का हलफनामा, कहा- बिना नोटिस नहीं हटेगा पात्र वोटर का नाम…

पटना/नई दिल्ली। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए स्पष्ट किया है कि किसी भी पात्र मतदाता का नाम बिना पूर्व नोटिस और सुनवाई के सूची से नहीं हटाया जाएगा। आयोग का यह बयान 6 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आया है। इस मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त को होगी।
पहला चरण पूरा, ड्राफ्ट लिस्ट जारी...
SIR का पहला चरण समाप्त हो चुका है और 1 अगस्त को प्रारूप मतदाता सूची जारी कर दी गई। आयोग के मुताबिक, बिहार के 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने अपने नाम की पुष्टि के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराए। इस विशाल प्रक्रिया में 38 जिला निर्वाचन पदाधिकारी, 243 निर्वाचन पंजीकरण पदाधिकारी, 77,895 बूथ लेवल अधिकारी, 2.45 लाख स्वयंसेवक और 1.60 लाख बूथ लेवल एजेंट शामिल रहे।
1 सितंबर तक दावे और आपत्तियां...
ड्राफ्ट सूची के बाद मतदाताओं को नाम जोड़ने, हटाने या संशोधन के लिए 1 सितंबर 2025 तक दावे और आपत्तियां दर्ज करने का समय दिया गया है। सभी दावों का निपटारा 7 कार्यदिवसों में किया जाएगा और अपील की सुविधा निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी व मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास उपलब्ध होगी।
ADR के आरोप और कोर्ट की सख्ती...
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने याचिका दाखिल कर दावा किया कि SIR प्रक्रिया में 65 लाख मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटाए गए हैं और पारदर्शिता पर सवाल उठाए। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से इस पर हलफनामा देने को कहा था। साथ ही, कोर्ट ने आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों को मान्यता देने पर भी विचार करने का सुझाव दिया। आयोग ने आधार को नागरिकता का प्रमाण मानने से इनकार किया, जिस पर कोर्ट ने आपत्ति जताई।
पारदर्शिता के लिए विशेष कदम...
आयोग ने बताया कि प्रवासी मजदूरों, युवाओं, वरिष्ठ नागरिकों और दिव्यांग मतदाताओं के लिए विशेष इंतज़ाम किए गए हैं। 246 अखबारों में विज्ञापन, ऑनलाइन-ऑफलाइन फॉर्म सुविधा, शहरी निकायों में विशेष कैंप और 2.5 लाख स्वयंसेवकों की तैनाती की गई है। रोजाना प्रेस रिलीज जारी कर प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जा रहा है।
राजनीतिक घमासान...
विपक्षी दल, विशेषकर राजद और कांग्रेस, SIR की समयसीमा और प्रक्रिया को लेकर हमलावर हैं। विपक्ष ने इसे दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ ‘साजिश’ बताते हुए संसद में जोरदार हंगामा किया और इसे ‘वोटों की डकैती’ करार दिया। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि यह मामला कोर्ट में लंबित है, इसलिए संसद में इस पर चर्चा नहीं हो सकती।