बिहार में बवाल: तेजस्वी बोले- “नाम ही नहीं लिस्ट में!” | आयोग ने दिखाया सबूत…

पटना | बिहार की सियासत में उस वक्त हलचल मच गई जब नेता प्रतिपक्ष और राजद नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया कि उनका नाम नई ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है। पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान तेजस्वी ने अपने EPIC नंबर के जरिए ऑनलाइन चेक कर यह दिखाया कि उन्हें “नो रिकॉर्ड फाउंड” का संदेश मिला। तेजस्वी ने सवाल खड़े करते हुए कहा, “अगर मेरा नाम ही वोटर लिस्ट में नहीं है, तो मैं चुनाव कैसे लड़ूंगा?” इसके साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग को “गोदी आयोग” करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेने की मांग की।
चुनाव आयोग का फौरन जवाब: नाम सूची में मौजूद...
तेजस्वी यादव के आरोपों के कुछ ही मिनटों के भीतर चुनाव आयोग ने आधिकारिक बयान जारी कर दावा किया कि तेजस्वी का नाम मतदाता सूची में दर्ज है। आयोग ने उनका सीरियल नंबर 416 और मतदान केंद्र का विवरण भी साझा किया। पटना जिला प्रशासन ने भी जांच कर यह स्पष्ट किया कि तेजस्वी का नाम मतदान केंद्र संख्या 204 (बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पुस्तकालय भवन) में क्रम संख्या 481 पर मौजूद है।
65 लाख वोटरों के नाम हटे, पारदर्शिता पर सवाल...
इस पूरे विवाद की पृष्ठभूमि में 1 अगस्त को जारी हुई बिहार की नई ड्राफ्ट वोटर लिस्ट है। चुनाव आयोग की ‘विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (SIR)’ के तहत जारी इस लिस्ट में करीब 65 लाख 64 हजार वोटरों के नाम हटा दिए गए हैं, जो कुल मतदाताओं का लगभग 8.5% है। तेजस्वी ने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया पारदर्शी नहीं थी। उनका कहना है कि हटाए गए वोटरों को न तो कोई नोटिस दिया गया और न ही सार्वजनिक रूप से बूथ-स्तरीय डेटा साझा किया गया।
किन जिलों में सबसे ज्यादा नाम कटे...?
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, नए ड्राफ्ट में कुल मतदाताओं की संख्या 7 करोड़ 24 लाख 5 हजार 756 हो गई है, जबकि पहले यह 7 करोड़ 89 लाख से ज्यादा थी। हटाए गए नामों में:
- 22.34 लाख मृत घोषित मतदाता
- 36.28 लाख स्थायी रूप से अन्यत्र स्थानांतरित
- 7.01 लाख डुप्लिकेट एंट्री
विशेष रूप से मुस्लिम बहुल सीमांचल के चार जिलों और दरभंगा में करीब 9.65 लाख नाम कटे हैं, जबकि तिरहुत और दरभंगा प्रमंडलों में करीब 21.29 लाख मतदाताओं को हटाया गया है। इन इलाकों को NDA का गढ़ माना जाता है।
राजनीतिक बहस तेज...
तेजस्वी यादव के बयान और आयोग की तत्काल प्रतिक्रिया के बाद राज्य की राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। जहां एक ओर विपक्ष पारदर्शिता पर सवाल उठा रहा है, वहीं चुनाव आयोग खुद को निष्पक्ष बताते हुए आंकड़ों के साथ जवाब दे रहा है। अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कोई संज्ञान लेता है या नहीं, और क्या यह मुद्दा आने वाले चुनावों में बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनेगा।