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पुणे में 73 लोग हुए GBS के शिकार, 14 वेंटिलेटर पर, जानें कैसे इंसानों का खात्मा करती है ये खतरनाक बीमारी?

Guillain-Barré syndrome: पुणे में गुइलन-बार्रे सिंड्रोम (GBS) के मामलों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी ने स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए चिंता का कारण बना दिया है. पिछले सप्ताह, तीन अस्पतालों से मिले अलर्ट के बाद, यह संख्या 26 से बढ़कर 73 हो गई, और 14 मरीजों को वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं. हालांकि इस बीमारी से किसी की मौत की सूचना नहीं है. लेकिन इससे इंसान की सेहत पर भारी असर पड़ सकता है. आइए जानते हैं कि GBS क्या है और यह कैसे इंसानों के लिए खतरा बन सकती है.

गुइलन-बार्रे सिंड्रोम (GBS) क्या है?

GBS एक दुर्लभ लेकिन गंभीर ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम अपनी ही तंत्रिका तंत्र (nerves) पर हमला कर देता है. इसके कारण शरीर में कमजोरी, सुन्नपन, और कभी-कभी सांस लेने में कठिनाई हो सकती है. यह बीमारी आमतौर पर एक बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण के बाद होती है, जैसे कि पेट की खराबी या जुकाम.

पुणे में GBS के मामलों की संख्या में पिछले हफ्ते जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई. एक सप्ताह के अंदर यह संख्या तीन गुना बढ़कर 73 हो गई, जिससे स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारियों में हड़कंप मच गया. इनमें से 14 मरीजों को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया, क्योंकि उनकी हालत बहुत गंभीर थी. यह संक्रामक बीमारी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को प्रभावित कर रही है, और इसमें बच्चों की संख्या भी चिंताजनक रूप से बढ़ी है.

गुइलन-बार्रे सिंड्रोम का कारण

विशेषज्ञों के अनुसार, GBS के पीछे एक बैक्टीरिया Campylobacter jejuni हो सकता है, जो आमतौर पर आंतों में संक्रमण का कारण बनता है. हाल ही में पुणे के विभिन्न अस्पतालों में इस बैक्टीरिया का पता मल के नमूनों से चला है. इस बैक्टीरिया के कारण शरीर का इम्यून सिस्टम तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है, जिससे नसों में सूजन और कमजोरी पैदा होती है. इसके परिणामस्वरूप मरीजों में शारीरिक कमजोरी और मोटर फंक्शन की समस्या होती है.

लक्षण और बचाव

GBS के लक्षणों में मुख्य रूप से हाथ-पैरों में सुन्नपन, कमजोरी, और लंबे समय तक दस्त रहना शामिल होते हैं. इस बीमारी से प्रभावित व्यक्ति को यदि तुरंत इलाज नहीं मिलता, तो उसकी हालत गंभीर हो सकती है, और सांस लेने में भी परेशानी आ सकती है.

स्वास्थ्य अधिकारी लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करने के लिए घर-घर सर्वेक्षण कर रहे हैं. पिछले कुछ दिनों में, 7,200 घरों का सर्वेक्षण किया गया है, ताकि संक्रमित लोगों का समय पर पता चल सके और उनका इलाज शुरू किया जा सके.

गुइलन-बार्रे सिंड्रोम का इलाज

GBS का इलाज जल्दी शुरू करने से मरीज ठीक हो सकते हैं. इलाज में आमतौर पर इम्युनोग्लोबुलिन थेरेपी या प्लाज्मा एक्सचेंज का इस्तेमाल किया जाता है. इससे शरीर के इम्यून सिस्टम को शांत किया जाता है और नसों को ठीक होने में मदद मिलती है. इस समय पुणे के अस्पतालों में GBS के इलाज के लिए दवाइयां और इंजेक्शंस की पर्याप्त आपूर्ति की जा रही है.

Chaiपुर
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NU Desk

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